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आखिरी धूप-क्षण / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

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पत्तियाँ फिर झरीं
आँधियों से घिरी
फूल की देहरी

खुशबुओं का महल
काँपकर ढह गया
आखिरी धूप-क्षण
झील में बह गया

ढंग आकाश के
देखकर रितु डरी
पत्तियाँ फिर झरीं

छावनी रंग के
राख में सो गयी
दिन-दहाड़े
खबर आँख की खो गयी

ठूँठ करते रहे
नीड़ से मसखरी
पत्तियाँ फिर झरीं

रोज़ टूटी-हुई साँस के
ज़िक्र हैं
पतझरों को
नये जश्न की फ़िक्र है

टहनियों की हँसी
हो गयी बावरी
पत्तियाँ फिर झरीं