Last modified on 30 मई 2014, at 18:48

आजु वृषभान भवन आनँद / हनुमानप्रसाद पोद्दार

आजु वृषभान भवन आनँद अति छायौ।
 राधा अवतार भयौ, सब कौ मन भायौ॥
 दुंदुभि नभ लगीं बजन, सुमन लगे बरसन।
 धा‌ए पुरबासी सब, करन कुँवारि-दरसन॥

 मंगल उत्साह मुदित नारि सकल गावत।
 लै-लै कमनीय भेंट कीर्ति-महल आवत॥
 नचत वृद्ध-तरुन-बाल, भ‌ए सब नचनियाँ।
 तिनके मुख धन्य होन प्रगटी रागिनियाँ॥

 राधा कौं जन्म जानि प्रेमी सब धा‌ए।
 प्रेम सुधा बरसन की आस मन लगा‌ए॥
 राधा बिनु हरै कौन मुनि-मन-हर-मन कौं।
 प्रगटै बिनु पात्र को आनँद-रस-घन कौं॥

 बरसैगो कृष्णघन पाय पात्र राधा।
 रस-धारा पावन तब बहैगी बिनु बाधा॥
 आ‌ए तहँ विविध बेष सुर-मुनि-रिषि भव-‌अज।
 दरसन कौं, परसन कौं कुँवारि-चरन-पंकज॥

 आ‌ए नंद-जसुमति अति चित में हरषा‌ए।
 बिबिध रत्न मुकता मनि भेंट संग ला‌ए॥
 प्रसव-घर पधारि महरि कुँवारि लेत कनियाँ।
 चूमत अति लाड़-चाव जात बलि निछनियाँ॥

 उभय मातु मिलीं अमित स्नेह तन-मन तें।
 कहि न जाय मिलन-प्रीति-रीति लघु बचन तें॥
 नंद वृषभानु मिले हिय सौं हिय ला‌ए।
 छायौ चहुँ ओर मोद, गोद नँद भरा‌ए॥