Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 22:56

आज कथा का अंत यहीं / कुमार रवींद्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:56, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=र...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज
 
 
 

 
 
कथा का
अंत यहीं होता है, साधो

कल फिर यहीं समाज जुड़ेगा
नई कथा होगी
किसिम-किसिम के लोग जुटेंगे
ठग-दम्भी-जोगी

हर दिन
अपनी अंतिम साँसें
यहीं, सुनो, बोता है, साधो

कुछ लाएँगे जोत दिये की
कुछ अँधियारे भी
मीठे जल के कलश लायेंगे
कुछ जल खारे भी
 
कोई कथा
ध्यान से सुनता
कोई सुन सोता है, साधो
 
आज कथा में बाँचा हमने
मानुष असुर हुए
सभागार में कब-कब
अनरथकारी हुए जुए
 
यह भी जाना
कब ऋषिकुल
अपना आपा खोता है, साधो