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आज गुमसुम है जो बर्बाद जज़ीरों जैसी / मोहसिन नक़वी

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आज गुमसुम है जो बर्बाद जज़ीरों जैसी,
उस की आँखों में चमक थी कभी हीरों जैसी
कितने मगरूर पहाड़ों के बदन चाक हुए,
तेज़ किरणों की जो बारिश हुई तीरों जैसी
जिस की यादों से ख्यालों के खजाने देखे,
उसकी सूरत भी लगी आज फकीरों जैसी
चाहतें लब पे मचलती हुई लड़की की तरह,
हसरतें आँख में ज़िन्दां के असीरों जैसी
हम अना मस्त, तहे दस्त बहुत हैं 'मोहसिन'
ये अलग बात है आदत है अमीरों जैसी.

ज़िन्दां=ज़ेल, असीरों=कैदियों