Last modified on 24 दिसम्बर 2014, at 14:29

आदि अनादि मेरा सांई / धरनीदास

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:29, 24 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan}} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आदि अनादि मेरा सांई।
दृष्ट न गुष्ट है अगम अगोचर
यह सब माया उनकी माई।
जो बनमाली सींचे मूल, सहजै पिवै डाल फल फूल।
जो नरपति को गिरह बुलावै, सेना सकल सहज ही आवै।
जो कोई कर भान प्रकासै तौ निसतारा सहजहि नासै।
गरूड़ पंख जो घर में लावै, सर्प जाति रहने नहिं पावै।
दरिया सुमिरै एकहि राम, एक राम सारै सब काम।