Last modified on 26 अप्रैल 2013, at 06:56

आसमां / पवन कुमार

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:56, 26 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पवन कुमार }} {{KKCatNazm}} <poem> आसमां जहाँ तक ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आसमां
जहाँ तक देखो
बस एक सा दिखता है
कहीं वो ख़ाने
नहीं हैं इसमें
जिनमें कि ये बँटा हो
कोई लकीर नहीं है
कोई पाला भी नहीं है
कि जिससे साबित हो सके
इधर का हिस्सा हमारा
उधर का तुम्हारा।
भरी आँखों तक
बस
एक सा दिखता है।
ये दौरे-खि़रद की गुस्ताखि़याँ
नहीं तो क्या है,
आसमां में हिस्सेदारी
तय हो रही है
ख़ुदा की अमानत में
ख़यानत हो रही है।
...वाह रे! सियासतदानो
ये कैसी सियासत है
ये कैसा फि’क्रो-अमल है।