Last modified on 7 जून 2014, at 16:18

इक्कीसवीं सदी में हिन्दी-कवि / सुशान्त सुप्रिय

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:18, 7 जून 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुशान्त सुप्रिय |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जैसे रहते हैं
सन्नाटे में स्वर
वैसे रहता है
इक्कीसवीं सदी में
हिंदी का कवि

जैसे रहती है
धमनियों में बेचैनी
जैसे रहती है शिराओंं में छटपटाहट
जैसे गहरे कुएँ के तल पर
रहता है आदिम अँधेरा
वैसे रहता है
इक्कीसवीं सदी में
हिंदी का कवि

जब वह लिखता है कविताएँ
तब काले-भूरे शब्द
कविताओं में से
रुलाई की तरह फूट कर
बाहर आते हैं

जैसे अपना सबसे प्यारा
खिलौना टूटने पर
बच्चा रोता है
ठीक वैसे ही रोते हैं
हिन्दी-कवि के शब्द
अपने समय को देख कर

इस रुलाई का
क्या मतलब है--
लोग पूछते हैं
एक-दूसरे से
और बिना उत्तर की
प्रतीक्षा किए
टी. वी. पर
रियलिटी-शो
और सीरियल देखने में
व्यस्त हो जाते हैं

किसी को क्या पड़ी है आज
कि वह पढ़े हिन्दी के कवि को ऐसे
जैसे पढ़ा जाना चाहिए
किसी भी कवि को