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इनी धरती आदो नींपज्यो आदा का चिकणा ते पान जी / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

इनी धरती आदो नींपज्यो, आदा का चिकणा ते पान जी।
इनी कूक दुल्लवजी नींपज्या, माँगऽ माँग छे कन्या को दानजी।
कन्या को दान ते बाबुल बहोत दोयलो,
मूरख सी दियो नी जाय।
लड़की कांय खऽ पाळई रे बाबुल, कांय खऽ पोसी,
कांय खऽ पायो जी काचो दूध।।
माया खऽ पाळई रे बाबुल, माया खऽ पोसी,
माया खऽ पायो काचो दूध जी।
चरवो भी दियो रे बाबूल, गंगाळ भी दीनी,
तो भी नी समझ्या दयालजी।