♦ रचनाकार: ईसुरी
मोरी रजऊ से नौनों को है
डगर चलत मन मोहै
अंग अंग में कोल कोल कें ईसुर रंग भरौ है ।
मन कौ हरन गाल कौ गुदना, तिल सौ तनक धरौ है ।
ईसुर कात उठन जोबन की, विरहा जोर करौ है ।
भावार्थ
मेरी रजऊ से सुन्दर कौन है ? रास्ते चलते मन मोह लेती है । ईश्वर ने उसके अंग अंग को तराश कर रंग भरा है ।
उसके गाल का गुदना छोटे तिल-सा लगता है । देखो, ईसुर ! उभरते यौवन को विरह कैसे सता रहा है ?