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उल्टे सूरज की आग जम गयी/ विनय प्रजापति 'नज़र'
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|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
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'''लेखन वर्ष: २००४'''<br/><br/>
सोचा था दिन चढ़ेगा दोपहर तक<br/>
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