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एक भी आँसू न कर बेकार / रामावतार त्यागी
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18:02, 4 दिसम्बर 2011
सफर शब्द की वर्तनी शुद्ध की
व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
काम अपने पाँव ही आते
सफ्रर
सफर
में
वह न ईश्वर के उठाए भी उठेगा
जो स्वयं गिर जाए अपनी ही नजर में
नीरज द्विवेदी
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