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औरत होना / रंजना जायसवाल

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‘पोते की शादी है नाचो माँ'-उकसाया मैंने माँ को
पकड़कर ले आई ‘डीजे’ के जगमगाते फर्श पर
नए गाने, नए तराने
शोर मचाता संगीत
थिरक रहे नए लड़के-लड़कियाँ
एक नयी दुनिया
बिलकुल अलग, माँ की जी गयी
दुनिया से
फिर भी नाची माँ
खूब नाची
कमर हिलाकर
हाथ उठाकर
भीगी आँखों से माँ के नृत्य को
कैमरे में कैद करती
मैं सोचती रही –
कितनी घुलनशील होती है स्त्री
जैसे ढालो ढल जाती है
हर उम्र हर माहौल
हर रूप में रंग भर जाती है
पर इतना नाचने के बाद भी
आंचल सिर पर रखना नहीं भूली माँ
औरत होना नहीं भूली माँ।