Last modified on 22 मई 2014, at 22:50

कबै हरि, कृपा करिहौ सुरति मेरी / गदाधर भट्ट

कबै हरि, कृपा करिहौ सुरति मेरी।
और न कोऊ काटनको मोह बेरी॥१॥

काम लोभ आदि ये निरदय अहेरी।
मिलिकै मन मति मृगी चहूँधा घेरी॥२॥

रोपी आइ पास-पासि दुरासा केरी।
देत वाहीमें फिरि फिरि फेरी॥३॥

परी कुपथ कंटक आपदा घनेरी।
नैक ही न पावति भजि भजन सेरी॥४॥

दंभके आरंभ ही सतसंगति डेरी।
करै क्यों गदाधर बिनु करुना तेरी॥५॥