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कमलाकातक संध्या / राजकमल चौधरी

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थिर-थिर लहरि, किनारे हिलइत
अपैत बासन सन खाली अछि जल भरबाके घाट
अछि खाली सभ बाट
माथक सिनुर पोछि लेलनि सुमुखि कमलाके धार
कएलक पापी सूर्य्य आत्महत्या
रक्त लिघुरल छल जल, अछि आब परम श्वेत
कमला भेली विधवा
आ रहि गेली वन्ध्या-ई संध्या