कि डसने लगी है जुदाई तुम्हारी।
अगरचे दिये हैं कई जख्म तुमने,
करूँ कैसे मैं जग हँसाई तुम्हारी।
कहूँ हाल अपना मैं किस-किस से जाकर,
कि खलने लगी बेवफ़ाई तुम्हारी।
लगी हथकड़ी जो मुहब्बत की तुमको,
तो होगी कभी क्या रिहाई तुम्हारी।
बहारों का देखा जो दिलकश नज़ारा,
रुलाने लगी आशनाई तुम्हारी।