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करें किस बात का शिकवा भला उससे गिला कैसा / कांतिमोहन 'सोज़'

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करें किस बात का शिकवा भला उससे गिला कैसा ।
उसे जब भूलना ठहरा तो उसका तज़किरा कैसा ।।

निशानी कोई क्यूँ छोड़ें हम इस आईनाख़ाने में,
जफ़ा हो या वफ़ा हो उससे कोई राबिता कैसा ।

हुए बदज़न जब अपनी ज़ात से फिर किससे क्या डरना,
कोई आफ़त कोई तख़रीब कैसी हादिसा कैसा ।

मेरी हस्ती ही आख़िर तेरे होने की शहादत है,
अगर हो जाम ही खाली वजूदे-मयकदा कैसा ।

भले बदज़ौक़ कहना सोज़ उठ जाएगा महफ़िल से,
किसी के हो गए हैं वो तो इसका तब्सिरा कैसा ।।