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कल रात दूर कहीं कोई गाता रहा देर तक
अँधेरे में जूतियाँ कोई चटकाता रहा देर तक
दूर वहाँ पर गूँजती रही एक उदास आवाज़
बज रहा था बीते सुख और आज़ादी का साज
खिड़की खोली मैंने और गीत वह सुनता रहा
सो रही तू...
(1889)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय