Last modified on 15 अगस्त 2018, at 11:18

कविता मेरे लिए / अशोक कुमार

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:18, 15 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कविता बस दृष्टि है मेरे लिए
जहाँ से देखता हूँ मैं

बस एक शीशे के पार ही तो होता है
दुनिया का सारा ऐश्वर्य

जहाँ ठहर जाता हूँ मैं!


घड़ियाँ बन्द क्यों हैं
________________

घड़ियाँ कलाईयों पर नहीं हैं अब
वे मुट्ठियों में हैं या जेबों में
पर समय गिरेबान पर चढ़ गया है
और रेत रहा है

समय की फिक्र से बच गयी हैं भुजायें
और हथेलियों या जेबों में बची हैं सिर्फ़ बन्द घड़ियाँ ही
समय के फिसलने के बाद

घड़ियों ने समय को व्यक्त करने से मना कर दिया है
वे उससे बँध कर नहीं रहना चाहतीं
और न ही उसे बाँध कर रखना चाहती हैं काँच के किसी घेरे में

दीवार अब समय देखे जाने की माकूल जगह नहीं रही
और घड़ियाँ अब वहाँ टाँगे जाने से बगावत कर बैठी हैं

नगर में टावर पुरातत्व के अवशेष भर हैं
और बन्द पड़ी हैं घड़ियाँ।