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कहत स्याम निज मुख / हनुमानप्रसाद पोद्दार

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कहत स्याम निज मुख सदा-हौं चिन्मय पर-तव।
पूर्न ग्यानमय, पै न लखि पायौ प्रिया-महव॥
रहै सदा बरबस लग्यौ, राधा में मन मोर।
रहौं प्रेम-बिहवल सदा, लखि राधा चित-चोर॥
राधा-प्रेम अगाध निधि पर्‌यौ रहौं दिन-रात।
बिबिध बीचि सँग मधुर नित नाचौं प्रमुदित गात॥
रहत लोभ मो मन सदा, पान्नँ राधा-प्रेम।
दुर्लभ, दोष-रहित, परम सुचि ज्यौं निर्मल हेम॥
राधा-प्रेमास्वाद की महिमा अमित अपार।
मो सुख ते कोटिन गुनौ वामें सुख-बिस्तार॥