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{{KKRachna
|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
|संग्रह=नहीं विराम लिया है / गुलाब खंडेलवाल
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कहाँ है ओ अनंत के वासी[[Category:गीत]]<poem>
कहाँ है, ओ अनंत के वासी ?तू मन मे है फिर भी आँखे है हैं दर्शन की प्यासी
प्रेम-भक्ति के तार भले ही मैंने तुझ से बाँधे
रह-रहकर उठ रहे विवादी सुर भी उनसे आधे
नयनों के सम्मुख दिखती है मुझको अंध गुफा-सी
प्रेम शक्ति के तार भले ही कितनी बार परस तेरा मैंने तुझ से बांधेमस्तक पर पायाकितनी बार डूबते मुझको तू तट पर ले आयाफिर भी क्यों हटती न हटाये चिंता की गलफाँसी ?
रह रह कर उठ रहे विवादी सुर नियम नियामक दोनों तू नियमों का हो दृढ पालकपर न नियम क्या बने क्षमा के, भूल करे यदि बालकगिरते-पड़ते भी उनसे आधेजो तुझ तक आने का अभिलाषी ?
नयनों कहाँ है, ओ अनंत के सम्मुख दिखती वासी ?तू मन मे है मुझको अंध गुफा सीफिर भी आँखे हैं दर्शन की प्यासी<poem>
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