Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:10

कामरी कारी कँधा पर देखि अहीरहिँ बोलि सबै ठहरायो / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कामरी कारी कँधा पर देखि अहीरहिँ बोलि सबै ठहरायो ।
जोई है सोई है मेरो तो जीव है याको मैँ पाय सभी कुछ पायो ।
कामरी लीन्होँ उढ़ाय तुरँतहि कामरी मेरो कियो मन भायो ।
कामरी तो मोहि जारो हुतो बरु कामरी वारे बिचारे बचायो ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।