Last modified on 2 फ़रवरी 2016, at 12:47

कालिन्दी के तीर / प्रेमघन

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:47, 2 फ़रवरी 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कालिन्दी के तीर, यहि विधि लीला नवल नव।
राधा श्री बलबीर, वृन्दावन मैं करत निति॥
मंगल राधा श्याम, मंगल मैं वृन्दाविपिन।
मंगल कुंज मुदाम, मंगल बद्रीनाथ द्विज॥
मंजुल मंगल मूल, जुगल सुमंगल पाठ यह।
पढ़त रहत नहिं सूल, जुगल जलज पद अलि बनत॥