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कालेधन की सफाई में मेरी भूमिका / प्रीति समकित सुराना

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मैंने
अपने अनुभवों की गुल्लक में
हमेशा जमा की
हर छोटी बड़ी बात
जो जुडी थी
मेरी जिन्दगी में
ख़ुशी या गम बनकर...
एक ख़ुशी,
दो आँसू,
पांच ख्वाहिशें,
दस सफलताएं,
बीस असफलताएं,
पचास सपने,
सौ कोशिशें,
पांच सौ ठोकरें,
हज़ार ताने...
कुछ सिक्के भी थे
अठन्नी जैसे आधे अपने,
एक उम्मीद,
दो रास्ते,
पांच विकल्प,
दस संकल्प...
ये थी
एक छोटी सी पूंजी
अपने अतीत से चुराकर
अपने वर्तमान में
अपनी भविष्यनिधि के रूप में
जमा की गई
मेरे कालेधन की कमाई...
अच्छा हुआ
अच्छे दिन लाने वाली सरकर ने घोषणा
सिर्फ पांच सौ और हज़ार को
लौटाने की करवाई
मेरे गुल्लक से सारे पांच सौ ठोकरों की टीस
और हज़ार तानों की पीड़ा
निकालकर रख दी मैंने बाहर
इस तरह कालेधन की सफाई में
मैंने अपनी भूमिका निभाई...
अब आधे अधूरे अपनों के बीच
तेरे होने की एक खुशी,
हमेशा साथ होने की एक उम्मीद,
दो आँसू ख़ुशी और गम के,
दो रास्ते अतीत की यादों और भविष्य की योजनाओं के,
पांच ख्वाहिशें सुख संपत्ति साधन सफलता
और स्वाभिमान की,
पांच विकल्प मेहनत, प्रयास, ज़िद, सच
और समर्पण के...
दस सफलताओं के दस संकल्प,
बीस असफलताओं से मिली सीख,
पचास सपनों को सच करने की
सौ कोशिशों के साथ,
पांच सौ ठोकरों की टीस
और लोगों के हज़ार तानों की पीड़ा के बिना
पूरी ईमानदारी से
कालाधन से तनावमुक्त जीवन जी सकुंगी...
सुनो!!
गनीमत है
मेरे गुल्लक में
पांच सौ और हज़ार के नोट
कम ही थे
तभी
गुल्लक आज भी भरी भरी सी है
सारा कालाधन निकल कर भी...