काश! होता मज़ा कहानी में
दिल मिरा बुझ गया जवानी में
फूल खिलते न अब चमेली पर
बात वो है न रातरानी में
उनकी उल्फ़त में ये मिला हमको
ज़ख़्म पाए हैं बस निशानी में
आओ दिखलायें एक अनहोनी
आग लगती है कैसे पानी में
तुम रहे पाक़-साफ़ दिल हरदम
मै रहा सिर्फ बदगुमानी में