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किताबों का बादशाह / भारत भूषण तिवारी / मार्टिन एस्पादा

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कमीलो के साथ किताबें हर कहीं
सफर करतीं, झुर्रीदार चेहरे वाले बेताल
की तरह हिदायतें देती हुई

नजूमी ने हथेली जैसे दबोच ली उसकी
और चेताया उसे
अल सल्वाडोर के बारे में
जहाँ सरहद पर पहरेदार तलाशी लेते हैं किताबों की
उखाड़ लेते है किताबों के पन्ने भी

चे और बगावत जैसे
गैरकानूनी लफ्जों की तस्करी करती हुई
किताबें जैसे थीं डकैत
किताबों की ख़ातिर,
उसकी रीढ़ में राइफल चुभोई गयी

खातिर किताबों के
उसकी ठुड्डी को कुचला एक कुहनी ने;
किताबों की खातिर,
बिजली के तारों ने हौले से लहराईं
शाखें ज़ालिम चिंगारियों की

छद्मावरण ओढ़े कप्तान ने उसे
दीवालतोड़ घूँसे और तर्कसंगत फासीवादी फलसफे
की तालीम देने की कोशिश की;
उसे समझाने में लगे पहरेदार
बार-बार वही सवाल पूछे-पूछ कर उसे
टिकाए रखा खाट पर तब तक
जब तक कोठरी में दाखिल न हो गयी सुबह
और फैल गयी फर्श पर बिना किसी की नज़र पड़े;
जीप में सख्त खामोशी रख कर
नौसैनिक भिड़ गये उसे मनाने के लिए
और बिना किताबों और पैसों के
उसे सरहद पर छोड़ आये अकेला

पर वह नहीं माना
उसके अपार्टमेंट में किताबें फलती-फूलती हैं
किताबों का प्रकोप हो जैसे
ढेर जमा होतीं, बिखरतीं-पड़तीं,
अल सल्वाडोर में
ट्रेज़री पुलिस और सेना के कप्तानों के
बुरे ख़्वाबों को स्याह कर देने वाले टिड्डों के झुंड की भाँति
झुंड छपे हुए शब्दों का,
किताबों के बादशाह
कमीलों के अधीन
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