Last modified on 25 मार्च 2012, at 13:00

कैसा है आज मौसम कुछ भी पता नहीं है / महेंद्र अग्रवाल


कैसा है आज मौसम कुछ भी पता नहीं है
है ईद या मुहर्रम कुछ भी पता नहीं है

सत्ता की चौधराहट ये वक्त है चुनावी
किसमें है कितना दमखम कुछ भी पता नहीं है

इस ज़िन्दगी ने हमको कुछ ऐसे दिन दिखाये
मन में खुशी है या ग़म कुछ भी पता नहीं है

सब सो रहे हैं डर के, अपनी अना के भीतर
बस्ती में गिर गया बम कुछ भी पता नहीं है

रोने को रो रहे हैं हालात के मुताबिक
आंसू हुए क्या कुछ कम कुछ भी पता नहीं है

जीने को जी रहे हैं नायाब ज़िन्दगी सी
तुझसे कहें क्या हम दम कुछ भी पता नहीं है

शफ़्फ़ाक ज़िन्दगी की शफ़्फ़ाक सी ग़ज़ल है
शेरों में आ गया जम कुछ भी पता नहीं है