Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:11

कोऊ न आयो उहाँ ते सखी री जहाँ मुरलीधर प्रान पियारे / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

कोऊ न आयो उहाँ ते सखी री जहाँ मुरलीधर प्रान पियारे ।
याही अँदेसे मे बैठी हुती उहि देस के धावन पौरि पुकारे ।
पाती दई धरि छाती लई दरकी अँगिया उर आनँद भारे ।
पूँछन को पिय की कुसलात मनो हिय द्वार किवार उघारे ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।