भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौने देलकै काठो के कंठी / धनी धरमदास

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:24, 21 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धनी धरमदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatAng...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

॥मंगल॥

कौने देलकै काठो के कंठी, कौने देलकै तिलकवो रे जान।
जान, कौने गुरु खोलल दसमी दुअरियो रे जान॥1॥
गुरु देलकै काठो के कंठी, सतगुरु देलकै तिलकवो रे जान।
जान, भेदी गुरु खोलल दसमी दुअरियो रे जान॥2॥
त्रिकुटी महल चढ़ी देखो दसो दिशा इँजोरियो रे जान।
जान, वही में देखो सतगुरु के सुरतियो रे जान॥3॥
रंग-बिरंग के बाजा बाजै, रंग-बिरंग फुलवाड़ियो रे जान।
जान, वही में घूमे सतगुरु मलिकवो रे जान॥4॥
गुरु मोरा हद-हद कैलकै, छन-छन अनहद सुनैलकै रे जान।
जान, वही रे बाजे मुरली बँसुरियो रे जान॥5॥
मुरली के शब्द सुनी सालै मोर कलेजवो रे जान।
जान,नाचै रे लागलै सुरति सुहागिन रे जान॥6॥
धर्मदास सतगुरु से कइलै अरजियो रे जान,
जान, गुरु गोविन्द सतलोक देखैलकै रे जान॥7॥