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कौन किसको क्या बताए क्या हुआ / कुमार अनिल

कौन किसको क्या बताए क्या हुआ
हर अधर पर मौन है चिपका हुआ

जब भी ली हैं सिन्धु ने अँगड़ाईयाँ
तट को फिर देखा गया हटता हुआ

वक़्त की आँधी उमड़ कर जब उठी
आदमी तिनके से भी हल्का हुआ

बाँटने आए है अंधे रेवड़ी
हाथ अपना खींच लो फैला हुआ

भीड़ में इक आदमी मिलता नहीं
आदमी अब किस कदर तन्हा हुआ

सोचता सोया था अपने देश की
स्वप्न में देखा मकाँ जलता हुआ

कह रहें हैं आप जिसको दिल मेरा
दर्द का इक ढेर है सिमटा हुआ