क्यों अकारण इस तरह हमको सताया आपने।
यों दिखा कर रास्ता सब कुछ भुलाया आपने॥
शून्यता हर ओर थी खाली पड़ी थी राह भी
उस अँधेरी रात में दीपक जलाया आपने॥
जलजला-सा आ गया था जब गिरी मीनार थी
तब निराश के भँवर से था बचाया आपने॥
था खुला जब द्वार दिल का तो दिखायी थी डगर
आगमन वर्जित बना कर फिर रुलाया आपने॥
हो गये निर्मम न जाने क्यों मसल दी पंखुरी
भूल बैठे इस सुमन को था खिलाया आपने॥
प्यास थी दुर्धर्ष जो जाएगी अचानक बुझ गयी
प्यार का इक घूँट कुछ ऐसे पिलाया आपने॥
हम अकेले हैं अकेले ही चलेंगे रात दिन
आज है हम को स्वयं से यों मिलाया आपने॥