भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़तरे की घंटी / अनिल विभाकर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनिल विभाकर |संग्रह= }} <poem> दुनिया को बांटो जितने …)
 
 
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
  
 
दुनिया को बांटो
 
दुनिया को बांटो
 
 
जितने हिस्से में चाहो बांटो
 
जितने हिस्से में चाहो बांटो
  
 
 
सड़कों को बांटो  
 
सड़कों को बांटो  
 
 
पगडंडियों को बांटो
 
पगडंडियों को बांटो
 
 
घरों को बांटो
 
घरों को बांटो
 
 
दिलों को बांटो
 
दिलों को बांटो
 
 
समाज को बांटो
 
समाज को बांटो
 
 
शहरों को बांटो
 
शहरों को बांटो
 
 
गांवों को बांटो
 
गांवों को बांटो
 
 
इसी तरह पूरी दुनिया को बांटो
 
इसी तरह पूरी दुनिया को बांटो
 
 
जहां तक हो सके बांटो
 
जहां तक हो सके बांटो
 
 
बांटो ... बांटो जल्दी बांटो
 
बांटो ... बांटो जल्दी बांटो
 
 
व्यवस्था बनाये रखने के लिए जरूरी है सबको बांटना
 
व्यवस्था बनाये रखने के लिए जरूरी है सबको बांटना
 
 
सिंहासन बचाये रखने के लिए भी जरूरी है सबको बांटना
 
सिंहासन बचाये रखने के लिए भी जरूरी है सबको बांटना
 
 
एक राय और एक राह पर लोगों का चलना  
 
एक राय और एक राह पर लोगों का चलना  
 
 
तुम्हारे राजसिंहासन के लिए खतरे की घंटी है
 
तुम्हारे राजसिंहासन के लिए खतरे की घंटी है
  
+
बांटो, सबको बांटो, जल्दी बांटो</poem>
बांटो, सबको बांटो, जल्दी बांटो
+

19:40, 24 मई 2011 के समय का अवतरण


दुनिया को बांटो
जितने हिस्से में चाहो बांटो

सड़कों को बांटो
पगडंडियों को बांटो
घरों को बांटो
दिलों को बांटो
समाज को बांटो
शहरों को बांटो
गांवों को बांटो
इसी तरह पूरी दुनिया को बांटो
जहां तक हो सके बांटो
बांटो ... बांटो जल्दी बांटो
व्यवस्था बनाये रखने के लिए जरूरी है सबको बांटना
सिंहासन बचाये रखने के लिए भी जरूरी है सबको बांटना
एक राय और एक राह पर लोगों का चलना
तुम्हारे राजसिंहासन के लिए खतरे की घंटी है

बांटो, सबको बांटो, जल्दी बांटो