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ख़ुद को कितनी दूर उड़ाया करते हैं / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

ख़ुद को कितनी दूर उड़ाया करते हैं,
आसमान का साथ निभाया करते हैं ।

होकर मुझसे ख़फ़ा गए थे जो पंछी,
पिंजरे से आवाज़ लगाया करते हैं ।

दिलों में हमने अब अपना घर बना लिया,
दुआ में रहकर वक़्त बिताया करते हैं ।

मिलकर भी जो देते हैं बस बेचैनी,
उनसे भी हम मिलने जाया करते हैं ।

अपनी-अपनी छत पर पहली बारिश में,
वो हमको हम उन्हें बुलाया करते हैं ।

जब औक़ात पूछते हैं तूफाँ हमसे,
हम काग़ज़ की नाव बनाया करते हैं ।

इसी शौक़ ने हमको ज़िन्दा रक्खा है,
दीवानों को ग़ज़ल सुनाया करते हैं ।