Last modified on 1 नवम्बर 2009, at 23:12

खाय गईँ खसम भसम को रमाय लाईँ / अज्ञात कवि (रीतिकाल)

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:12, 1 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खाय गईँ खसम भसम को रमाय लाईँ ,
सँपति नसाय दुहूँ कुल मेँ बिघन की ।
छाई भई साधुन की पाँति को पवित्र कीन्होँ ,
माईजी कहायकै लुगाई बनी जन की ।
कासमीरी छोहरे दिखाय परैँ कहूँ तो ,
न पांय धरैँ भूमै न हवास रहैँ तनकी ।
पाय पाय पूतन बहाय दीन्हीँ सोतन मेँ ,
हाय गति कहाँ लौँ बखानौँ भगतिन की ।


रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।