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खुद ही ख़ातिर जीते सभी हैं औरों पे मरना सीखिए / पल्लवी मिश्रा

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खुद ही ख़ातिर जीते सभी हैं औरों पे मरना सीखिए,
चाहत है गर मुहब्बत की तो प्यार करना सीखिए।

गर ज़िंदगी कुदरत की नेमत, है मौत भी तोहफा उसी का,
हँस के जीना सीखिए और हँस के मरना सीखिए।

जीने का ढंग हो खूबसूरत, साथ हो मकसद भी कोई,
आता अगर है यह सलीका, तो ठीक, वरना सीखिए।

मंज़िल बहुत है दूर अभी, मुश्किल बहुत हैं रास्ते,
दरिया पे चलना सीखिए, शोलों से गुजरना सीखिए।

उसपार घने जंगल के है इक गुलिस्ताँ बेहद हसीं
ख़्वाहिश अगर है फूल की, काँटों पे चलना सीखिए।

ख़्वाबों के मखमली सेज पर सोकर न उम्र गुजारिये,
शिदद्त से ज़माना याद करे, कुछ कर गुजरना सीखिए।

ताउम्र कभी गिरें न हम, ऐसा तो है मुमकिन नहीं,
गिरना कोई खता नहीं, गिरकर सँभलना सीखिए।

है दोस्त और दुश्मन में फर्क तो बस मामूली-सा,
दुश्मन नज़र न आएगा, खुद को बदलना सीखिए।

कहते किसे हिन्दू हैं आप, और सिख, मुसलमाँ हैं कौन?
सब इन्सान हैं, हर इन्सान को, बस इन्सान कहना सीखिए।

हों गीत सुरीले, नज्म खुशनुमा, और ग़ज़ल कुछ ऐसी हो
सीधा जो दिल पर असर करे, वो शेर कहना सीखिए।