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खु़द खे कंहिं ग़म जो प्यारो रखु / एम. कमल

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खु़द खे कंहिं ग़म जो प्यारो रखु।
दर्द दिल जो, न्यारो रखु॥

हर खु़दा खां किनारो करि।
पाणु इन्सानु पारो रखु॥

वक्त जी लहर मौजी आ-
को नज़र में किनारो रखु॥

शहर में आँ त माण्हुनि सां।
रस्तो भी शहर वारो रखु॥

दिल ते छांयल हुजे भलि राति।
चेहरो पर सुबह वारो रखू॥

भलि क़लमु ज़हर जड़िो करि।
पर ज़बाँ खे न खारो रखु॥