गगन केॅ झुकावोॅ
धरती पटावोॅ
फाटलोॅ करारी
दरारो मिटावोॅ॥
सड़लोॅ गर्मी सें
सूखलोॅ छै फूल
नै पड़लै पानी
फरलोॅ छै शूल
उपजै नै भेद, सबकेॅ मिढावोॅ॥
रंग सब एक्के
रंग नै चढ़ावोॅ
छोड़ोॅ दुराव केॅ
न तोंय टकरावोॅ
मिलोॅ तों सभ्भे से, सबकेॅ पुराबोॅ॥
बात बढ़ैला सँ
बढ़ै छै बात
गाछी आ बिरछी पर
फरै छै पात
लगै जौं आग-
बातैं बुझावोॅ
गगन केॅ झुकावोॅ॥