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गर हौसला बुलंद तुम्हारा तो कैसी मुश्किल है / डी. एम. मिश्र

गर हौसला बुलंद तुम्हारा तो कैसी मुश्किल है
मन जिसका हारा वो कहता दूर बहुत मंज़िल है

पाँव हुए हैं ज़ख्मी बेशक दिल क्यों छोटा करते
उसकी बात न करिये मुझसे जो काहिल बुज़दिल है

होठों पर लाने वाली ये बात नहीं है माना
ख़ुद से प्रश्न मगर करना क्या तुमसे वो काबिल है

सेाना चाँदी धन दौलत सब उसके आगे मिट्टी
गेारी के गालों पर देखो कितना सुंदर तिल है

उसने कौन हिसाब लगाया क्या खोया, क्या पाया
समझ नहीं सकते हो उसको वो आशिक़ का दिल है

वो सागर है बहुत कश्तियाँ उसमें डूबी होंगी
ये मत सोचो, नज़र उठाओ देखो वो साहिल है