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गाने लगे नवगीत / एक बूँद हम / मनोज जैन 'मधुर'

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गीत भी गाने लगे नवगीत
नव कलेवर, नयी भाषा
पुष्टता ले छनद में
लोक अॅंचल की विविधता
को संजोकर बन्द में
कंठ को भाने लगे नवगीत

हर कसौटी पर सदा उतरें
खरे ये स्वर्ण से
ग्राम-नागर बोध इनमें
झॉंकता हर वर्ण से
और महुआने लगे नवगीत

सहज बिम्ब प्रतीक धरती
से सदा रहते जुड़े
लक्ष्य भेदी लौट आए
गीत ये जब भी उड़े
मंच पर छाने लगे नवगीत