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गीत 11 / पाँचवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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बाह्य विषय के बाहर छोड़ोॅ अरु अन्दर के ध्याबोॅ
नयन बन्द करि अरु दृष्टि के भृकुटि बीच तों लाबोॅ।

प्राण वायु अपान वायु के
सम करि करोॅ नियंत्रण,
मन-बुद्धि-इन्द्रिय के जीतोॅ
हय पथ मोक्ष परायण,
इच्छा-भय अरु काम-क्रोध के, सहजें सुखा दुरावोॅ।

बाह्य विषय के चित्र
हमेशा बाहर भटकावै छै,
मन-बुद्धि-तन बाह्य विषय में
खींच-खींच लावै छै,
कामजनित सब संस्कार, संयम में लानि जरावोॅ

नयन बन्द करतें साधक के
आलस-निन्द सतावै,
द्वीदिल कमल बसै भृकुटि पर
अनहद नाद जगावै
धारौ प्रथम ध्यान भृकुटि पर, आज्ञा चक्र जगावोॅ।

श्वांस रॅ गति के, सब से पहिने
दक्षिण-वाम विचारोॅ
इंगला-पिंगला-मध्य-सुषुम्णा
पर सम गति से धारोॅ,
वहेॅ सुषुम्णा पर सद्गुरु के देल नाम अटकावोॅ।

सब शुभ करम यग अरु तप छिक
साधक सदा तपै छै,
जे जिनका पर श्रद्धा रखै छै
तिनकर नाम जपै छै,
सकल लोकपति के स्वामी में चित तों अपन लगावोॅ
बाह्य विषय के बाहर छोड़ोॅ अरु अन्दर के ध्यावोॅ।