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गीत 14 / दोसर अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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अर्जुन उवाच-

अचल समाधि अेॅ स्थिति प्रज्ञ के शुभ लक्षण समझावोॅ
कैसे बोलै, कैसे बैठे, कैसे चलै बतावोॅ।

भगवान उवाच-

सुनि अर्जुन के प्रश्न कृष्ण
सब से पहिने मुसकैलन,
स्थिति प्रज्ञता लेल
कामना के परित्याग बतैलन
पार्थ आतमा से स्व आतमा के पहिने पहचानोॅ
राग द्वेष छै सूक्ष्म कामना, एकरा प्रथम दुरावोॅ।
दुख में नै उद्वेग उठै
नै सुख में अति हर्षावै,
राग-द्वेष-भय-शोक-क्रोध में
स्थिर बुद्धि के पावै
मान और अपमान से उठि कै ऊ सम भाव रखै छै
सर्दी-गर्मी-वर्षा के सब दिन सम रूप निभावोॅ।
स्थितप्रज्ञ सम रूप रही
शुभ-अशुभ वस्तु सम धारै
नेह-द्वेष से ऊपर उठि कै
नित सम भाव स्वीकारै
नै आसक्ति अपन कहि केॅ, नै आन कही क दुरावै
सब संयोग-वियोग त्यागि कै स्थिर बुद्धि अपनावोॅ।