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गीत 20 / अठारहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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जौने इन्द्रिय के सुख पावै
उनकर विषय-वासना के सुख, राजस सुख कहलावै।

प्रथम लगै सुख अमृत सन, परिणाम दिखै बिख जैसन
बुद्धि रहै आसक्त भोग से, भोगै ऐसन-वैसन
छहो दोष जब कसि कै बाँधै, फेर मुक्ति नै पावै
जौने इन्द्रिय के सुख पावै।

इन्द्रिय सुख के कहों क्षणिक सुख, जे बल-बुद्धि नसावै
मन अनीति के पंथ चले लेॅ बेर-बेर उकसावै
विविध रोग व्यापै तब तन में, मृत्यु बोलि धमकावै
जौने इन्द्रिय के सुख पावै।

जे सुख अपनोॅ भोग काल में भोगनिहार के सोहै
और ओकर परिणाम भोक्ता के रहि-रहि कै मोहै
जे प्रमाद-आलस अरु निन्दा के न दोष पतियावै
से सुख तामस सुख कहलावै।

निन्द्रा में मन अरु इन्द्रिय के कारज थकित रहै छै
इहै लेल निन्द्रा के सुख के प्राणी सुख समझै छै
और कर्म त्यागै के रोॅ सुख, आलस सुख कहलावै
तामस, सच्चा सुख नेॅ कहावै।

हे अर्जुन, जे प्राणी के अन्दर प्रमाद छै जागै
व्यर्थ क्रिया के करै, करै के जोग कर्म के त्यागै
झूठ-कपट-हिंसा आवी केॅ नित अनीति करबावै
से सुख तामस सुख कहलावै।