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गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र / अनवर शऊर

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गो कठिन है तय करना उम्र का सफ़र तनहा
लौट कर न देखूँगा चल पड़ा अगर तनहा

सच है उम्र भर किस का कौन साथ देता है
ग़म भी हो गया रुख़्सत दिल को छोड़ कर तनहा

आदमी को गुम-राही ले गई सितारों तक
रह गए बयाबाँ में हज़रत-ए-ख़िज़्र तनहा

है तो वज्ह-ए-रुसवाई मेरी हम-रही लेकिन
रास्तों में ख़तरा है जाओगे किधर तनहा

ऐ 'शुऊर' इस घर में इस भरे पड़े घर में
तुझ सा ज़िंदा-दिल तनहा और इस क़दर तनहा