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घोर आतप से जुड़ी बरसात है / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

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घोर आतप से जुड़ी बरसात है
रात के पीछे सुनहरी प्रात है

आज कर ले जो तुझे करना अभी
हाल कल क्या हेा किसे यह ज्ञात है

ग़म के पर्दे में छुपी है हर ख़ुशी
हार है तो जीत उसके साथ है

वक़्त कैसा भी हो जाता है गुज़र
सिर्फ़ रह जाती यहाँ हर बात है
मत किसी पर डाल नफ़रत की नज़र
पंक में मिलता खिला जलजात है

है किसी भी शस्त्र का उतना नहीं
बात का जितना प्रबल आघात है

रोक लें मंज़िल के दीवाने का पथ
कंटकों की क्या भला औक़ात है

साधना के सामने झुकता है जग
मान की मिलती नहीं ख़ैरात है
 
दोस्तो! इसको जनाज़ा मत कहो
ये शहीदे-वतन की बारात है

लोग कहते हैं ग़ज़ल जिसको ‘मधुप’
वह जिगर के दर्द की सौगात है