चढ़ा हूँ मै गुमनाम उन सीढियों तक
मिरा ज़िक्र होगा कई पीढ़ियों तक
ये बदनाम क़िस्से, मिरी ज़िंदगी को
नया रंग देंगे, कई पीढ़ियों तक
ज़मा शायरी उम्रभर की है पूंजी
ये दौलत ही रह जाएगी पीढ़ियों तक
"महावीर" क्यों मौत का है तुम्हे ग़म
ग़ज़ल बनके जीना है अब पीढ़ियों तक