Last modified on 9 जुलाई 2015, at 12:33

चरमर चरमर / दिविक रमेश

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:33, 9 जुलाई 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBaalKavita}} <p...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चलो चलें हम चल कर देंखें
गिरे हुए सूखे पत्तों पर,
मज़ा आएगा जब गाएँगे
ज़ोर-ज़ोर से पत्ते मिलकर।

चरमर-चरमर, चरमर-चरमर,
चरमर-चरमर, चरमर-चरमर।

पेड़ कहेंगे, देखो बच्चो
ये गाते हैं, तुम भी गाओ,
चरमर-चरमर, चरमर-चरमर,
चरमर-चरमर, चरमर-चरमर।

बोलो जब पत्ते गाएँगे
मज़ा आएगा तुमको कैसा?
तुम बोलोगे- चरमर-चरमर,
चरमर-चरमर, चरमर-चरमर।

हिला हिल कर दोनों बाँहें
दौड़ोगे जब झूम झूम कर
बोलो, पत्ते क्या बोलेंगे-
चरमर-चरमर, चरमर-चरमर।

पेड़ हँसेंगे सोच-सोचकर
शुरू शुरू जब आते पत्ते,
कितने भोले! कितने प्यारे!
बिल्कुल बच्चे होते पत्ते!

सोचो, पेड़ नहीं होते जो
कैसे गाते चरमर चरमर,
कब होते ये सूखे पत्ते
गीत न होता चरमर चरमर!

चरमर-चरमर, चरमर-चरमर,
चरमर-चरमर, चरमर-चरमर।