Last modified on 27 फ़रवरी 2013, at 21:17

चलाचल मन तू ब्रिज की ओर / शिवदीन राम जोशी

Kailash Pareek (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:17, 27 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवदीन राम जोशी । }} {{KKCatPad}} <poem> चला चल ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चला चल मन तू ब्रज की ओर ।
जहां गोपियां राधा संग में, नांचे नन्दकिशोर ।।
वृन्दावन में कुंजगली है, तू मन सोची बात भली है ।
रास और महारास देखना, होकर प्रेम विभोर ।।
वहीं मिलेंगें श्याम सलौना, देख-देख सब कोना-कोना ।
श्यामा श्याम मिलेंगें दोनों, देखुंगा कर जोर ।।
मेर मुकुट धर पिताम्बर धर, जय-जय मोहन जय मुरलीधर ।
मोही एक डर लग रहा मनहर, कृष्णा है चित चोर।।
नन्दलाल ब्रजराज कन्हैया, पार लगाना मोरी नैया ।
कर्महीन शिवदीन दीन की, बिरियां आना दौर ।।