Last modified on 15 जुलाई 2016, at 00:24

चाँदी के दिन-सोने के दिन / पंख बिखरे रेत पर / कुमार रवींद्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:24, 15 जुलाई 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चाँदी के दिन
सोने के दिन
खुशबू के टापू पर होने के दिन
 
फूलों के तट पर
चन्दन की नावें
आओ, उन्हें
मूँगे के वन तक पहुँचावें
 
आये फिर सपनों को बोने के दिन
चाँदी के दिन
सोने के दिन
 
धूप की हथेली पर
मेंहदी-रेखाएँ
आओ, उन्हें
सीपी के जल से नहलाएँ
 
सूरज को लहरों से धोने के दिन
चाँदी के दिन
सोने के दिन
 
चुटकी भर साँसों की
सिंदूरी बातें
आओ, उन्हें
जादुई गुफाओं में कातें
 
हुए साथ जंगल में खोने के दिन
चाँदी के दिन
सोने के दिन