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चान फिर चमकलो / रामकृष्ण

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चाननी के आसे-पासे
फूल जे महकलो हे
गन्ह में नहाके एगो
भाव सन्सहकलो हे॥
दूर के सिमाना में
आझ सपना जे ऊगल।
भूल के भुलैआ में
नेह के कनी जे फूजल।
ओही पंछहरी में
गरबैया चहकलो हे॥
आसके समुन्नर में
झाँझ हे मनीरा हे।
साँस के मनिरवा में
गीत भरल पीरा हे॥
अखरे सिनेहिआ के
छंद फिन बहकलो हे॥
पान के न चन्नन के
धूप के न बाती के
साँझ भरल जिनगी के
बात हे, सँघाती के।
नीन में ऊबल-डूबल
चान फिन चहकलो हे॥