Last modified on 6 मई 2014, at 14:05

चींटी बोली / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:05, 6 मई 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभुदयाल श्रीवास्तव |अनुवादक= |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चींटी बोली चलो कहीं से,
च‌ना खरीदें भाई।
अब तो सहन नहीं होता है,
भूख मुझे लग आई।

चींटा बोला शक्कर-गुड़ की,
गंध मुझे है आती।
इतना मीठा माल रखा,
तू खाने क्यों न जाती।

बोली चींटी अरे भाईजी,
गुड़ से डर है लग‌ता।
जो भी उसके गया पास‌ तो,
जाकर वहीं चिपकता।