भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छंद 36 / शृंगारलतिकासौरभ / द्विज

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:13, 29 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विज |अनुवादक= |संग्रह=शृंगारलति...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोरठा
(बुद्धिस्थिता भगवती का उपदेश)

तातैं हदै-सँभारि, हरि-राधा को किन सुजस।
बरनन करत बिचारि, जिनके इमि सेबक किते॥

भावार्थ: इससे चित्त को सावधान करके श्रीराधा-माधव के सुयश का वर्णन क्यों नहीं करते, जिसके वसंत जैसे अनेक सेवक हैं।